हकीम ओ आरिफ़ ओ सूफ़ी तमाम मस्त-ए-ज़ुहूर
किसे ख़बर कि तजल्ली है ऐन-ए-मस्तूरी
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परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए
जावेद के नाम
निगह बुलंद सुख़न दिल-नवाज़ जाँ पुर-सोज़
ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा
वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ
तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
सबक़ मिला है ये मेराज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे
असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद
कमाल-ए-तर्क नहीं आब-ओ-गिल से महजूरी
दम-ए-आरिफ़ नसीम-ए-सुब्ह-दम है
अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं
फ़ितरत ने न बख़्शा मुझे अंदेशा-ए-चालाक