रम्ज़-ओ-ईमा इस ज़माने के लिए मौज़ूँ नहीं
और आता भी नहीं मुझ को सुख़न-साज़ी का फ़न
क़ुम-बिइज़निल्लाह कह सकते थे जो रुख़्सत हुए
ख़ानक़ाहों में मुजावर रह गए या गोरकन
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गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख
ज़ौक़ ओ शौक़
जवाब-ए-शिकवा
बच्चे की दुआ
'इक़बाल' ने कल अहल-ए-ख़याबाँ को सुनाया
निकल जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
परेशाँ कारोबार-ए-आश्नाई
हिमाला
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
कभी आवारा ओ बे-ख़ानुमाँ इश्क़
वही मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को