इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा
तू भी अभी ना-तमाम मैं भी अभी ना-तमाम
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किसे ख़बर कि सफ़ीने डुबो चुकी कितने
फ़िर्क़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं
परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए
हज़रात-ए-इंसाँ
ख़ुदी की जल्वतों में मुस्तफ़ाई
मीर-ए-सिपाह ना-सज़ा लश्करियाँ शिकस्ता सफ़
तिरे सीने में दम है दिल नहीं है
हर चीज़ है महव-ए-ख़ुद-नुमाई
तराना-ए-मिल्ली
ज़ौक़ ओ शौक़
हुई न आम जहाँ में कभी हुकूमत-ए-इश्क़
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए