तमीज़-ए-ख़ार-ओ-गुल से आश्कारा
नसीम-ए-सुब्ह की रौशन-ज़मीरी
हिफ़ाज़त फूल की मुमकिन नहीं है
अगर काँटे में हो ख़ू-ए-हरीरी
Allama Iqbal
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वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ
बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम
पुराने हैं ये सितारे फ़लक भी फ़र्सूदा
की हक़ से फ़रिश्तों ने 'इक़बाल' की ग़म्माज़ी
कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
ख़ुदी के ज़ोर से दुनिया पे छा जा
नानक
ला-इलाहा-इल्लल्लाह
वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
दम-ए-आरिफ़ नसीम-ए-सुब्ह-दम है
यही ज़माना-ए-हाज़िर की काएनात है क्या