तरीक़-ए-अहल-ए-दुनिया है गिला-शिकवा ज़माने का
नहीं है ज़ख़्म खा कर आह करना शान-ए-दरवेशी
ये नुक्ता पीर-ए-दाना ने मुझे ख़ल्वत में समझाया
कि है ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ शेरी फ़ुग़ाँ रूबाही ओ मेशी
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तू क़ादिर ओ आदिल है मगर तेरे जहाँ में
एक पहाड़ और गिलहरी
उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
मीर-ए-सिपाह ना-सज़ा लश्करियाँ शिकस्ता सफ़
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
मोहब्बत
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
मिलेगा मंज़िल-ए-मक़्सूद का उसी को सुराग़
फ़िरदौस में 'रूमी' से ये कहता था 'सनाई'
कभी आवारा ओ बे-ख़ानुमाँ इश्क़
इस राज़ को इक मर्द-ए-फ़रंगी ने किया फ़ाश