तरह अंदेशा अफ़्लाकी नहीं है
तिरी पर्वाज़ लाैलाकी नहीं है
ये माना अस्ल शाहीनी है तेरी
तिरी आँखों में बेबाकी नहीं है
Jaun Eliya
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फ़रिश्ते आदम को जन्नत से रुख़्सत करते हैं
तिरी दुनिया जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही
उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में
तिरे सीने में दम है दिल नहीं है
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
रम्ज़-ओ-ईमा इस ज़माने के लिए मौज़ूँ नहीं
मोहब्बत का जुनूँ बाक़ी नहीं है
'अत्तार' हो 'रूमी' हो 'राज़ी' हो 'ग़ज़ाली' हो
यक़ीं मिस्ल-ए-ख़लील आतिश-नशीनी
क्या इश्क़ एक ज़िंदगी-ए-मुस्तआ'र का
वही अस्ल-ए-मकान-ओ-ला-मकाँ है