वही अस्ल-ए-मकान-ओ-ला-मकाँ है
मकाँ क्या शय है? अंदाज़-ए-बयाँ है
ख़िज़्र क्यूँ-कर बताए क्या बताए
अगर माही कहे दरिया कहाँ है
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'इक़बाल' ने कल अहल-ए-ख़याबाँ को सुनाया
आज़ादी-ए-अफ़्कार से है उन की तबाही
खो न जा इस सहर ओ शाम में ऐ साहिब-ए-होश
ये काएनात अभी ना-तमाम है शायद
ख़िरद ने मुझ को अता की नज़र हकीमाना
है याद मुझे नुक्ता-ए-सलमान-ए-ख़ुश-आहंग
यक़ीं मिस्ल-ए-ख़लील आतिश-नशीनी
हिमाला
तिरी निगाह फ़रोमाया हाथ है कोताह
बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़
यही आदम है सुल्ताँ बहर-ओ-बर का
मैं तुझ को बताता हूँ तक़दीर-ए-उमम क्या है