यक़ीं मिस्ल-ए-ख़लील आतिश-नशीनी
यक़ीं अल्लाह मस्ती ख़ुद-गज़ीनी
सुन ऐ तहज़ीब-ए-हाज़िर के गिरफ़्तार
ग़ुलामी से बतर है बे-यक़ीनी
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तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
निकल जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
हर इक मक़ाम से आगे गुज़र गया मह-ए-नौ
आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
जमाल-ए-इश्क़-ओ-मस्ती नय-नवाज़ी
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो
जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में
हवा हो ऐसी कि हिन्दोस्ताँ से ऐ 'इक़बाल'
जलाल-ए-पादशाही हो कि जमहूरी तमाशा हो
वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में