ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा
तड़प जा पेच खा खा कर बदल जा
नहीं साहिल तिरी क़िस्मत में ऐ मौज
उभर कर जिस तरफ़ चाहे निकल जा
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तिरी दुनिया जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही
पास था नाकामी-ए-सय्याद का ऐ हम-सफ़ीर
कमाल-ए-जोश-ए-जुनूँ में रहा मैं गर्म-ए-तवाफ़
ये मेहर है बे-मेहरी-ए-सय्याद का पर्दा
उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
हर इक ज़र्रे में है शायद मकीं दिल
नानक
वो मेरा रौनक़-ए-महफ़िल कहाँ है
मैं जो सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा
रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमल
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख