जवानों को मिरी आह-ए-सहर दे
फिर इन शाहीं बचों को बाल-ओ-पर दे
ख़ुदाया आरज़ू मेरी यही है
मिरा नूर-ए-बसीरत आम कर दे
Habib Jalib
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Faiz Ahmad Faiz
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अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
हिमाला
नाला है बुलबुल-ए-शोरीदा तिरा ख़ाम अभी
निगह बुलंद सुख़न दिल-नवाज़ जाँ पुर-सोज़
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
किसे ख़बर कि सफ़ीने डुबो चुकी कितने
तिरा तन रूह से ना-आश्ना है
अबुल-अला-म'अर्री
समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा
अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है
वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-काएनात में रंग