सौ सौ उमीदें बंधती है इक इक निगाह पर
मुझ को न ऐसे प्यार से देखा करे कोई
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यक़ीं मिस्ल-ए-ख़लील आतिश-नशीनी
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
ढूँडता फिरता हूँ मैं 'इक़बाल' अपने आप को
फ़रमान-ए-ख़ुदा
एजाज़ है किसी का या गर्दिश-ए-ज़माना
पूछ उस से कि मक़्बूल है फ़ितरत की गवाही
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
रम्ज़-ओ-ईमा इस ज़माने के लिए मौज़ूँ नहीं
ये कौन ग़ज़ल-ख़्वाँ है पुर-सोज़ ओ नशात-अंगेज़
मक़ाम-ए-शौक़ तिरे क़ुदसियों के बस का नहीं
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
कभी तन्हाई-ए-कोह-ओ-दमन इश्क़