Love Poetry of Allama Iqbal (page 3)
नाम | अल्लामा इक़बाल |
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अंग्रेज़ी नाम | Allama Iqbal |
जन्म की तारीख | 1877 |
मौत की तिथि | 1938 |
जन्म स्थान | Lahore |
फ़रमान-ए-ख़ुदा
फ़रिश्ते आदम को जन्नत से रुख़्सत करते हैं
एक नौ-जवान के नाम
एक आरज़ू
औरत
ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़
यूँ हाथ नहीं आता वो गौहर-ए-यक-दाना
ये पीरान-ए-कलीसा-ओ-हरम ऐ वा-ए-मजबूरी
ये पयाम दे गई है मुझे बाद-ए-सुब्ह-गाही
ये हूरयान-ए-फ़रंगी दिल ओ नज़र का हिजाब
ये दैर-ए-कुहन क्या है अम्बार-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक
या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन
वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ
वही मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी
तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना
तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मक़ाम से गुज़र
था जहाँ मदरसा-ए-शीरी-ओ-शाहंशाही
तिरी निगाह फ़रोमाया हाथ है कोताह
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
ताज़ा फिर दानिश-ए-हाज़िर ने किया सेहर-ए-क़ादिम
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
शुऊर ओ होश ओ ख़िरद का मोआमला है अजीब
समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा
फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह ओ दमन
परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए
निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या है
ने मोहरा बाक़ी ने मोहरा-बाज़ी
नाला है बुलबुल-ए-शोरीदा तिरा ख़ाम अभी
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
न तख़्त-ओ-ताज में ने लश्कर-ओ-सिपाह में है