आलोक मिश्रा कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आलोक मिश्रा

आलोक मिश्रा कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आलोक मिश्रा
नामआलोक मिश्रा
अंग्रेज़ी नामAlok Mishra

सब सितारे दिलासा देते हैं

मैं भी बिखरा हुआ हूँ अपनों में

क्या क़यामत है कि तेरी ही तरह से मुझ से

जब से देखा है ख़्वाब में उस को

जाने किस बात से दुखा है बहुत

एक पत्ता हूँ शाख़ से बिछड़ा

बुझती आँखों में तिरे ख़्वाब का बोसा रक्खा

ज़रा भी काम न आएगा मुस्कुराना क्या

वो बे-असर था मुसलसल दलील करते हुए

उन की आमद है गुल-फ़िशानी है

सवालों में ख़ुद भी है डूबी उदासी

साँस लेते हुए डर लगता है

साल ये कौन सा नया है मुझे

फूल से ज़ख़्मों का अम्बार सँभाले हुए हैं

फिर तिरी यादों की फुंकारों के बीच

मेरे ही आस-पास हो तुम भी

ख़ाक हो कर भी कब मिटूंगा मैं

जज़्ब कुछ तितलियों के पर में है

जाने किस बात से दुखा है बहुत

हम मुसलसल इक बयाँ देते हुए

इक अधूरी सी कहानी मैं सुनाता कैसे

दिल पर किसी की बात का ऐसा असर न था

धूप अब सर पे आ गई होगी

चीख़ की ओर मैं खिंचा जाऊँ

बुझती आँखों में तिरे ख़्वाब का बोसा रक्खा

बुझे लबों पे तबस्सुम के गुल सजाता हुआ

आँखों का पूरा शहर ही सैलाब कर गया

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