अलक़मा शिबली कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अलक़मा शिबली

अलक़मा शिबली कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अलक़मा शिबली
नामअलक़मा शिबली
अंग्रेज़ी नामAlqama Shibli

सूरज पे जो थूकोगे तो क्या पाओगे

किस वास्ते साहिल पे खड़े हो शश्दर

ख़ुद-साख़्ता अफ़्साने सुनाते रहिए

जब तजरबा की धूप में एहसास आया

हर सुब्ह के चेहरे को निखारा किस ने

मेरा ज़ौक़-ए-सज्दा-रेज़ी रास जिन को आ गया

हैं ख़्वाब भी और ख़्वाब की ताबीरें भी

गुम-कर्दा-ए-मंज़िल हुई आवाज़-ए-दरा

गुलज़ार से क्या दश्त-ओ-दमन से गुज़रे

एहसास में बे-ताबीे-ए-जाँ रख दी है

ये क्या कि फ़क़त अपनी ही तस्वीर बनाओ

उस मंज़िल-ए-हयात में अब गामज़न है दिल

क्यूँ लग़्ज़िश-ए-पा मेरी मलामत का हदफ़ है

गुम रहोगे कब तक अपनी ज़ात ही में

ज़ख़्म दिल का ख़ूँ-चकाँ ऐसा न था

वो मसाफ़-ए-जीस्त में हर मोड़ पर तन्हा रहा

जुनून-ए-शौक़-ए-मोहब्बत की आगही देना

दश्त-दर-दश्त फिरा करता हूँ प्यासा हूँ मैं

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