गए थे हम भी बहर की तहों में झूमते हुए
हर एक सीप के लबों में सिर्फ़ रेगज़ार था
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मिरे चेहरे पे जो आँसू गिरा था
एक सन्नाटा बिछा है इस जहाँ में हर तरफ़
हम पी भी गए और सलामत भी हैं 'अम्बर'
हर इक नदी से कड़ी प्यास ले के वो गुज़रा
चेहरों पे ज़र-पोश अंधेरे फैले हैं
गुलाबी चोंच
वो लम्हा मुझ को शश्दर कर गया था
ये सच है रंग बदलता था वो हर इक लम्हा
रोज़ हम जलती हुई रेत पे चलते ही न थे
जान देने का हुनर हर शख़्स को आता नहीं
आज फिर धूप की शिद्दत ने बड़ा काम किया
सूप के दाने कबूतर चुग रहा था और वो