इल्ज़ाम लगाया है तो साबित भी करो
सच्ची है अगर बात तो बे-ख़ौफ़ कहो
लेकिन तुम्हें ग़लती का अगर है एहसास
फिर उस की तलाफ़ी में भी ताख़ीर न हो
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Rahat Indori
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Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
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Ahmad Faraz
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क्या तुम ने मिरा हाल-ए-ज़बूँ देखा है
होंटों से लगाता है कोई जाम कहाँ
बे-कैफ़ हैं दिन-रात कहूँ तो किस से
इस दहर में अब किस पे भरोसा कीजे
क्यूँ उन को सताने में मज़ा आता है
इक वो हैं कि इंकार किए जाते हैं
इक जहल के सैलाब में जो बहते हैं
मत कहियो ज़बाँ है ये मुसलामानों की
बेकस की कोई किस लिए इमदाद करे
अफ़्सोस कि जिस दिन से हम आज़ाद हुए