अमीर इमाम कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अमीर इमाम

अमीर इमाम कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अमीर इमाम
नामअमीर इमाम
अंग्रेज़ी नामAmeer Imam
जन्म की तारीख1984
जन्म स्थानSambhal

ये कार-ए-ज़िंदगी था तो करना पड़ा मुझे

वो मारका कि आज भी सर हो नहीं सका

शहर में सारे चराग़ों की ज़िया ख़ामोश है

पहले सहरा से मुझे लाया समुंदर की तरफ़

न आबशार न सहरा लगा सके क़ीमत

जो शाम होती है हर रोज़ हार जाता हूँ

इस बार राह-ए-इश्क़ कुछ इतनी तवील थी

धूप में कौन किसे याद किया करता है

अपनी तरफ़ तो मैं भी नहीं हूँ अभी तलक

गुम-शुदा

यूँ मिरे होने को मुझ पर आश्कार उस ने किया

ये कार-ए-ज़िंदगी था तो करना पड़ा मुझे

वो मारका कि आज भी सर हो नहीं सका

शहर में सारे चराग़ों की ज़िया ख़ामोश है

मज़ीद इक बार पर बार-ए-गिराँ रक्खा गया है

कि जैसे कोई मुसाफ़िर वतन में लौट आए

ख़ुद को हर आरज़ू के उस पार कर लिया है

काँधों से ज़िंदगी को उतरने नहीं दिया

कभी तो बनते हुए और कभी बिगड़ते हुए

हर एक शाम का मंज़र धुआँ उगलने लगा

छुप जाता है फिर सूरज जिस वक़्त निकलता है

बन के साया ही सही सात तो होती होगी

अब इस जहान-ए-बरहना का इस्तिआरा हुआ

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