सारी दुनिया के हैं वो मेरे सिवा
मैं ने दुनिया छोड़ दी जिन के लिए
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Parveen Shakir
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ज़ब्त देखो उधर निगाह न की
अपनी महफ़िल से अबस हम को उठाते हैं हुज़ूर
आया न एक बार अयादत को तू मसीह
हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
हुए नामवर बे-निशाँ कैसे कैसे
मिसी छूटी हुई सूखे हुए होंट
लाए कहाँ से उस रुख़-ए-रौशन की आब-ओ-ताब
हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं
ज़ीस्त का ए'तिबार क्या है 'अमीर'
जो चाहिए सो माँगिये अल्लाह से 'अमीर'
शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो
आए बुत-ख़ाने से काबे को तो क्या भर पाया