कुछ इतनी देर तक तक़रीर की मंसूबा-बंदी पर
न देखा ये मुक़र्रिर ने कि इक इक सीट ख़ाली है
रुके जिस दम वो दम लेने तो सद्र-ए-अंजुमन बोलीं
हमारी नस्ल-ए-आइंदा भी अब आने ही वाली है
Gulzar
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ब-मजबूरी हर इक रंज-ओ-मेहन लिखना पड़ा मुझ को
उठ्ठे कहाँ बैठे कहाँ कब आए गए कब
इक छोड़ो हो इक और जो मिस मात करो हो
लिबास-ए-नौ में रक्खी है रिआयत ऐसी टेलर ने
जब पढ़ा जौर ओ जफ़ा मैं ने तो आई ये सदा
गोरख धंदा
मिरी मजबूरियों ने नाज़ुकी का ख़ून कर डाला
मिस्टर कॉफ़ी
चाँद-मारी
सिगनल
कश्मकश
कोई ले ज़ोर की चुटकी तो है इंकार पोशीदा