अमीर हम्ज़ा साक़िब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अमीर हम्ज़ा साक़िब
नाम | अमीर हम्ज़ा साक़िब |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Amir Hamza Saqib |
जन्म की तारीख | 1971 |
जन्म स्थान | Bhiwandi |
ये गर्द है मिरी आँखों में किन ज़मानों की
तुम्हारी ज़ात हवाला है सुर्ख़-रूई का
तू आया लौट आया है गुज़रे दिनों का नूर
तेरी ख़ुशबू तिरा पैकर है मिरे शेरों में
तह कर चुके बिसात-ए-ग़म-ओ-फ़िक्र-ए-रोज़गार
रौशन अलाव होते ही आया तरंग में
फिर बदन में थकन की गर्द लिए
मेरी दुनिया इसी दुनिया में कहीं रहती है
मेरी बरहना पुश्त थी कोड़ों से सब्ज़ ओ सुर्ख़
मकाँ उजाड़ था और ला-मकाँ की ख़्वाहिश थी
लहू जिगर का हुआ सर्फ़-ए-रंग-ए-दस्त-ए-हिना
ख़बर भी है तुझे इस दफ़्तर-ए-मोहब्बत को
एक जहान-ए-ला-यानी ग़र्क़ाब हुआ
तेरी इनायतों का अजब रंग ढंग था
तिरे ख़याल के जब शामियाने लगते हैं
ताब खो बैठा हर इक जौहर-ए-ख़ाकी मेरा
सबा बनाते हैं ग़ुंचा-दहन बनाते हैं
निज़ाम-ए-बस्त-ओ-कुशाद-ए-मानी सँवारते हैं
न तो बे-करानी-ए-दिल रही न तो मद्द-ओ-जज़्र-ए-तलब रहा
मीरास-ए-बे-बहा भी बचाई न जा सकी
ख़ुश-आमदीद कहता गुलों का जहान था
ख़याल-ए-यार का सिक्का उछालने में गया
हैरान बहुत ताबिश-ए-हुस्न-दीगराँ थी
ग़ज़लों से तज्सीम हुई तकमील हुई
गर्द-बाद-ए-शरार हैं हम लोग
दश्त-ए-बला-ए-शौक़ में ख़ेमे लगाए हैं
बदन के लुक़्मा-ए-तर को हराम कर लिया है