Ghazals of Amir Nazar

Ghazals of Amir Nazar
नामआमिर नज़र
अंग्रेज़ी नामAmir Nazar
जन्म की तारीख1990
जन्म स्थानpatna, bihar

ज़मीं के जिस्म पे यूँ यूरिश-ए-क़ज़ा कब तक

यूँ तो बिखरे थे मगर कुछ तो कहीं पर कुछ था

तअ'ल्लुक़ात के सारे दिए बुझे हुए थे

शब को जब यूरिश-ए-विज्दान में आ जाते हैं

सहर की जुम्बिश क़द-ए-मतानत पे रह गई थी

नुक़्ता-ए-बे-नूर ने मिनहाज-ए-इम्काँ कर दिया

मौज-दर-मौज तो साहिल की रगों पर दौड़े

लम्स-ए-यक़ीन अपना कहाँ पेश-ओ-पस में था

कुछ सुलगते हुए ख़्वाबों की फ़रावानी है

खुला है तेरे बदन का भी इस्तिआरा कुछ

ख़ेमा-ए-जाँ को जो देखूँ तो शरर-बार लगे

ख़ामोशियों को आलम-ए-अस्वात पर कभी

जो भी कुछ ताक़-ए-ख़यालात पे रह जाते हैं

जबीं को चैन कहाँ ज़ेर-ए-लब दुआ है बस

हम कि सरमाया-ए-ईक़ान लिए बैठे हैं

हमारे चेहरों में पिन्हाँ हैं ज़ाविए क्या क्या

फ़िशार-ए-तीरह-शबी से सहर निकल आए

एक इक तार-ए-नफ़स आशुफ़्ता-ए-आहंग था

दश्त के खेमा-ए-दरिया में मकीं कोई था

दरून-ए-जिस्म की दीवार से उभरती है

दरपेश तो हैं दीदा-ए-हैरान हज़ारों

चश्म-ए-बे-कैफ़ में कारिंदा-ए-मंज़र न रहा

बोसीदा सही ज़ेब-ए-क़बा तक नहीं आती

अब तो लफ़्ज़ों के तक़ाज़ों का भरोसा न रहा

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