हम कि सरमाया-ए-ईक़ान लिए बैठे हैं
हम कि सरमाया-ए-ईक़ान लिए बैठे हैं
अज़मत-ए-ख़ाक तिरी शान लिए बैठे हैं
कितने बे-रंग फ़सीलों को क़बाएँ देंगे
सब के सब तंगी-ए-दामान लिए बैठे हैं
मेरी शह-रग का लहू लाख मुशाहिद ठहरे
साहिब-ए-शहर तो फ़रमान लिए बैठे हैं
शौक़ में सूरत-ए-तकमील-ए-हुनर की ख़ातिर
हम भी आईना-ए-इम्कान लिए बैठे हैं
फिर दर-ओ-बाम पे क़िंदील सजे भी तो क्या
ज़ौ-शिकन रात का सामान लिए बैठे हैं
अब भी उम्मीद-ए-कफ़-ए-पा-ए-तलब रौशन है
ज़िंदगी हम तिरा एहसान लिए बैठे हैं
तेरा चेहरा कभी उतरा नहीं देखा 'आमिर'
आइने आज भी अरमान लिए बैठे हैं
(782) Peoples Rate This