गर्मी में ग़म-ए-लिबादा ना-ज़ेबा है
मस्ती में ख़याल-ए-बादा ना-ज़ेबा है
काफ़ी है ज़रूरत के मुताबिक़ दुनिया
दुनिया हद से ज़ियादा ना-ज़ेबा है
Javed Akhtar
Wasi Shah
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1007) Peoples Rate This
है उन की यही ख़ुशी कि हम ग़म में रहें
जो मा'नी-ए-मज़मूँ है वही उनवाँ है
मर मर के लहद में मैं ने जा पाई है
हर ज़र्रे पे फ़ज़्ल-ए-किबरिया होता है
गरमी में ग़म-ए-लिबादा ना-ज़ेबा है
असलियत अगर नहीं तो धोका ही सही
सरमाया-ए-इल्म-ओ-फ़ज़्ल खोया मैं ने
ये संग-ए-निशाँ है मंज़िल-ए-वहदत का
जो कुछ मुसीबतें हैं तुझ पर कम हैं
कम-ज़र्फ़ अगर दौलत-ओ-ज़र पाता है
सब कहते हैं मरकज़-ए-बदी है दुनिया
दुनिया के हर एक ज़र्रे से घबराता हूँ