कम-ज़र्फ़ अगर दौलत-ओ-ज़र पाता है
मानिंद-ए-हबाब उभर के उतर आता है
करते हैं ज़रा सी बात पर फ़िक्र ख़सीस
तिनका थोड़ी सी हवा से उड़ जाता है
Allama Iqbal
Rahat Indori
Gulzar
Anwar Masood
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Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
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मर मर के लहद में मैं ने जा पाई है
दुनिया के हर एक ज़र्रे से घबराता हूँ
हर क़तरे में बहर-ए-मा'रफ़त मुज़्मर है
कुछ वक़्त से एक बीज शजर होता है
है उन की यही ख़ुशी कि हम ग़म में रहें
इस जिस्म की केचुली में इक नाग भी है
जो कुछ मुसीबतें हैं तुझ पर कम हैं
हर महफ़िल से ब-हाल-ए-ख़स्ता निकला
जो मा'नी-ए-मज़मूँ है वही उनवाँ है
सरमाया-ए-इल्म-ओ-फ़ज़्ल खोया मैं ने
गरमी में ग़म-ए-लिबादा ना-ज़ेबा है