कुछ वक़्त से एक बीज शजर होता है
कुछ रोज़ में एक क़तरा गुहर होता है
ऐ बंदा-ए-ना-सबूर तेरा हर काम
कुछ देर में होता है मगर होता है
Jaun Eliya
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Gulzar
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सरमाया-ए-इल्म-ओ-फ़ज़्ल खोया मैं ने
जो कुछ मुसीबतें हैं तुझ पर कम हैं
सब कहते हैं मरकज़-ए-बदी है दुनिया
हर ज़र्रे पे फ़ज़्ल-ए-किबरिया होता है
मर मर के लहद में मैं ने जा पाई है
ये संग-ए-निशाँ है मंज़िल-ए-वहदत का
दुनिया के हर एक ज़र्रे से घबराता हूँ
असलियत अगर नहीं तो धोका ही सही
इस जिस्म की केचुली में इक नाग भी है
कम-ज़र्फ़ अगर दौलत-ओ-ज़र पाता है
हर महफ़िल से ब-हाल-ए-ख़स्ता निकला
गरमी में ग़म-ए-लिबादा ना-ज़ेबा है