सरमाया-ए-इल्म-ओ-फ़ज़्ल खोया मैं ने
सब दफ़्तर-ए-पारीना डुबोया मैं ने
बस है तिरी ख़ाक-ए-पा तयम्मुम के लिए
ऐ दोस्त वुज़ू से हाथ धोया मैं ने
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कम-ज़र्फ़ अगर दौलत-ओ-ज़र पाता है
जो कुछ मुसीबतें हैं तुझ पर कम हैं
दुनिया के हर एक ज़र्रे से घबराता हूँ
इस जिस्म की केचुली में इक नाग भी है
गरमी में ग़म-ए-लिबादा ना-ज़ेबा है
असलियत अगर नहीं तो धोका ही सही
कुछ वक़्त से एक बीज शजर होता है
ये संग-ए-निशाँ है मंज़िल-ए-वहदत का
हर महफ़िल से ब-हाल-ए-ख़स्ता निकला
हर क़तरे में बहर-ए-मा'रफ़त मुज़्मर है
सब कहते हैं मरकज़-ए-बदी है दुनिया
है उन की यही ख़ुशी कि हम ग़म में रहें