अंजुम ख़लीक़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अंजुम ख़लीक़
नाम | अंजुम ख़लीक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Anjum Khaleeq |
जन्म की तारीख | 1950 |
ज़मीं की गोद में इतना सुकून था 'अंजुम'
नख़्ल-ए-अना में ज़ोर-ए-नुमू किस ग़ज़ब का था
मिरे जुनूँ को हवस में शुमार कर लेगा
क्या जानें सफ़र ख़ैर से गुज़रे कि न गुज़रे
जिन को कहा न जा सका जिन को सुना नहीं गया
इंसान की निय्यत का भरोसा नहीं कोई
बीते हुए लम्हात को पहचान में रखना
यही तुम पर भी खुलना है
तुम्हारी पोरों का लम्स अब तक.....
ख़ुश-आमदीद
ए'तिराफ़
चाँद हम दोनों से मुशाबह है
ये कैसी बात मिरा मेहरबान भूल गया
यहाँ जो ज़ख़्म मिलते हैं वो सिलते हैं यहीं मेरे
तहय्युर है बला का ये परेशानी नहीं जाती
सितमगरों से डरूँ चुप रहूँ निबाह करूँ
सदाक़तों को ये ज़िद है ज़बाँ तलाश करूँ
पलकों तक आ के अश्क का सैलाब रह गया
मिरे जुनूँ को हवस में शुमार कर लेगा
कुछ उज़्र पस-ए-वा'दा-ख़िलाफ़ी नहीं रखते
कितना ढूँडा उसे जब एक ग़ज़ल और कही
ख़ाक का रिज़्क़ यहाँ हर कस-ओ-ना-कस निकला
कार-ए-हुनर सँवारने वालों में आएगा
कहो क्या मेहरबाँ ना-मेहरबाँ तक़दीर होती है
कहाँ तक और इस दुनिया से डरते ही चले जाना
जहाँ सीनों में दिल शानों पे सर आबाद होते हैं
जब तक फ़सील-ए-जिस्म का दर खुल न जाएगा
हम अपने ज़ौक़-ए-सफ़र को सफ़र सितारा करें
हर शे'र से मेरे तिरा पैकर निकल आए
दस्तार-ए-हुनर बख़्शिश-ए-दरबार नहीं है