मैं एक एक तमन्ना से पूछ बैठा हूँ
मुझे यक़ीं नहीं आता कि मेरा सब है तू
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तन्हाई का सफ़रनामा
ज़मीन हाँपने लगती है इक जगह रुक कर
कर रहा हूँ तुझे ख़ुशी से बसर
किस ने आबाद किया है मरी वीरानी को
उसे छूते हुए भी डर रहा था
विसाल की तीसरी सम्त
ज़ुहूर-ए-कश्फ़-ओ-करामात में पड़ा हुआ हूँ
चख रहा था मैं इक बदन का नमक
कहने सुनने के लिए और बचा ही क्या है
एक महबूस नज़्म
पानी की आवाज़
साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'