माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया है
आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है
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उम्र की सारी थकन लाद के घर जाता हूँ
अध-बुने ख़्वाबों का अम्बार पड़ा है दिल में
कुछ तो खिंची खिंची सी थी साअत विसाल की
हिज्र को बीच में नहीं छोड़ा
शब-ए-जमाल सलामत रहें तिरे परी-ज़ाद
ख़ुद तक मिरी रसाई नहीं हो रही अभी
एक और मुुहब्बत....
हवा का तख़्त बिछाता हूँ रक़्स करता हूँ
मैं और मेरी तन्हाई
कल तो तिरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की
मैं जिस चराग़ से बैठा था लौ लगाए हुए
मैं आज ख़ुद से मुलाक़ात करने वाला हूँ