मिट के आसूदा हो गया हूँ मैं
ख़ाक में ख़ाक-ज़ाद मिल गया है
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एक और मुुहब्बत....
पुर्सा
मैं जिस चराग़ से बैठा था लौ लगाए हुए
एक साकित रात का अज़ाब
चराग़ हाथ में हो तो हवा मुसीबत है
सोला दिसम्बर
किस ने आबाद किया है मरी वीरानी को
खुली हुई है जो कोई आसान राह मुझ पर
जस्त भरता हुआ फ़र्दा के दहाने की तरफ़
तुम अकेले में मिले ही नहीं वर्ना तुम को
पत्थर में कौन जोंक लगाएगा मेरे दोस्त
गिर्या