मुझ से ख़ाली है मेरा आईना
आँसुओं से भरा हुआ हूँ मैं
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माज़रत रौंदे हुए फूलों से कर लूँ तो चलूँ
सब को अपने ज़ेहन से झटका ख़ुद को याद किया
किस शफ़क़त में गुँधे हुए मौला माँ बाप दिए
शब-ए-जमाल सलामत रहें तिरे परी-ज़ाद
दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ
कैसी सोहबत है कैसी तन्हाई
मैं अंधेरे में हूँ मगर मुझ में
चराग़ हाथ में हो तो हवा मुसीबत है
मैं तुम्हारे लिए ले के आया हूँ
चख रहा था मैं इक बदन का नमक
दोस्तो मेरे लिए कोई भी अफ़्सुर्दा न हो
इन दिनों ख़ुद से फ़राग़त ही फ़राग़त है मुझे