पत्थर में कौन जोंक लगाएगा मेरे दोस्त
दिल है तो मुब्तला भी कहीं होना चाहिए
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मेरी मिट्टी से बहुत ख़ुश हैं मिरे कूज़ा-गर
तुम अकेले में मिले ही नहीं वर्ना तुम को
मैं तुम्हारे लिए ले के आया हूँ
टूटे हुए प्याले
एक साकित रात का अज़ाब
जाने तोड़े थे किस ने किस के लिए
एक महबूस नज़्म
मेरी बे-लिबासी तुम्हारा पहनावा नहीं
ये मोहब्बत का जो अम्बार पड़ा है मुझ में
किसी तरह से मैं टल जाऊँ अपनी मर्ज़ी से
दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ