रौशनी भी नहीं हवा भी नहीं
माँ का नेमुल-बदल ख़ुदा भी नहीं
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इंहिराफ़
रात तिरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की
कर रहा हूँ तुझे ख़ुशी से बसर
हवा का तख़्त बिछाता हूँ रक़्स करता हूँ
वो इक दिन जाने किस को याद कर के
सारा शगुफ़्ता
साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'
सब को अपने ज़ेहन से झटका ख़ुद को याद किया
आईना साफ़ था धुँदला हुआ रहता था मैं
ख़ुद अपने हाथ से क्या क्या हुआ नहीं मिरे साथ
मुहाजिर परिंदों का स्वागत
मैं सब का सब मोहब्बत के लिए हूँ