सभी दरवाज़े खुले हैं मिरी तन्हाई के
सारी दुनिया को मयस्सर है रिफ़ाक़त मेरी
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बरहम हैं मुझ पे इस लिए दोनों तरफ़ के लोग
मुहाजिर परिंदों का स्वागत
हाँ ज़माने की नहीं अपनी तो सुन सकता था
इतना तरसाया गया मुझ को मोहब्बत से कि अब
मैं चीख़ता रहा कुछ और भी है मेरा इलाज
उस ख़ुदा की तलाश है 'अंजुम'
किस ज़माने में मुझ को भेज दिया
मैं एक एक तमन्ना से पूछ बैठा हूँ
मैं ख़ुद को मिस्मार कर के मलबा बना रहा हूँ
तुम अकेले में मिले ही नहीं वर्ना तुम को
मैं आज ख़ुद से मुलाक़ात करने वाला हूँ
चख रहा था मैं इक बदन का नमक