शब-ए-जमाल सलामत रहें तिरे परी-ज़ाद
जिन्हें मैं ख़्वाब सुनाता हूँ रक़्स करता हूँ
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जस्त भरता हुआ फ़र्दा के दहाने की तरफ़
उम्र की सारी थकन लाद के घर जाता हूँ
ठीक से याद भी नहीं अब तो
मैं जब वजूद से होते हुए गुज़रता हूँ
कुछ तो खिंची खिंची सी थी साअत विसाल की
एक दिन मेरी ख़ामुशी ने मुझे
अपनी तस्दीक़ मुझे तेरी गवाही से हुई
कैसी सोहबत है कैसी तन्हाई
उदासी खींच लाई है यहाँ तक
किस शफ़क़त में गुँधे हुए मौला माँ बाप दिए
मैं चीख़ता रहा कुछ और भी है मेरा इलाज
माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया है