तू मिरे सब्र का अंदाज़ा लगा सकता है
तेरी सोहबत में तिरा हिज्र गुज़ारा है मियाँ
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उदासी खींच लाई है यहाँ तक
काग़ज़ था मैं दिए पे मुझे रख दिया गया
शब-ए-जमाल सलामत रहें तिरे परी-ज़ाद
बस एक जिस्म एक ही क़द में पड़ा रहूँ
एक क़दीम ख़याली की निगरानी में
बस अंधेरे ने रंग बदला है
काश
मिट के आसूदा हो गया हूँ मैं
मैं चीख़ता रहा कुछ और भी है मेरा इलाज
दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ
रौशनी भी नहीं हवा भी नहीं
मुझ से ख़ाली है मेरा आईना