उदासी खींच लाई है यहाँ तक
मैं आँसू था समुंदर में पड़ा हूँ
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ख़्वाब शर्मिंदा-ए-विसाल हुआ
जस्त भरता हुआ फ़र्दा के दहाने की तरफ़
एक साकित रात का अज़ाब
जब ख़ुदा भी नहीं था साथ मरे
कर रहा हूँ तुझे ख़ुशी से बसर
ज़ुहूर-ए-कश्फ़-ओ-करामात में पड़ा हुआ हूँ
पत्थर में कौन जोंक लगाएगा मेरे दोस्त
सभी दरवाज़े खुले हैं मिरी तन्हाई के
तेरे अंदर की उदासी के मुशाबह हूँ मैं
कैसी होती हैं उदासी की जड़ें
टूटे हुए प्याले
हर तरफ़ तू नज़र आता है जिधर जाता हूँ