ये भी आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बहुत है मुझ को
देखता लेता हूँ उसे हाथ लगा लेता हूँ
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काश
हम बे-वतन ख़्वाबों के जोलाहे हैं
दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ
मैं सब का सब मोहब्बत के लिए हूँ
वो इक दिन जाने किस को याद कर के
जाने तोड़े थे किस ने किस के लिए
ख़ुद अपने हाथ से क्या क्या हुआ नहीं मिरे साथ
पुर्सा
ज़मीन हाँपने लगती है इक जगह रुक कर
सख़्त मुश्किल में किया हिज्र ने आसान मुझे
कहने सुनने के लिए और बचा ही क्या है
ऐसी क्या बीत गई मुझ पे कि जिस के बाइस