जो मेरे गाँव के खेतों में भूक उगने लगी
मिरे किसानों ने शहरों में नौकरी कर ली
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हमें नज़दीक कब दिल की मोहब्बत खींच लाती है
बादबाँ को गिला हवाओं से
ग़रीब-ए-शहर तो फ़ाक़े से मर गया 'आरिफ़'
तू ज़मीं पर है कहकशाँ जैसा
अंधे अदम वजूद के गिर्दाब से निकल
जब भी दुश्मन बन के इस ने वार किया
मुझ को वैसा ख़ुदा मिला बिल्कुल
'आरिफ़'-हुसैन धोका सही अपनी ज़िंदगी
तुझे मैं ज़िंदगी अपनी समझ रहा था मगर
दोज़ख़ भी क्या गुमान है जन्नत भी है फ़रेब