'अर्श' किस दोस्त को अपना समझूँ
सब के सब दोस्त हैं दुश्मन की तरफ़
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Rahat Indori
Gulzar
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Allama Iqbal
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Wasi Shah
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मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है
ये दुनिया है उसे दार-उल-फ़ितन कहना ही पड़ता है
हुस्न पर दस्तरस की बात न कर
दिए जलाए उम्मीदों ने दिल के गिर्द बहुत
नैरंगी-ए-बहार-ओ-ख़िज़ाँ देखते रहे
दीवाली
जितनी वो मिरे हाल पे करते हैं जफ़ाएँ
है देखने वालों को सँभलने का इशारा
मेरे प्यारे वतन
न नशेमन है न है शाख़-ए-नशेमन बाक़ी
रहगुज़र रहगुज़र से पूछ लिया
दिल-ए-फ़सुर्दा पे सौ बार ताज़गी आई