आसिम वास्ती कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आसिम वास्ती

आसिम वास्ती कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आसिम वास्ती
नामआसिम वास्ती
अंग्रेज़ी नामAsim Wasti
जन्म की तारीख1958
जन्म स्थानAbu Dhabi

ज़ाविया धूप ने कुछ ऐसा बनाया है कि हम

ये हम-सफ़र तो सभी अजनबी से लगते हैं

वक़्त बे-वक़्त झलकता है मिरी सूरत से

तुम्हारे साथ मिरे मुख़्तलिफ़ मरासिम हैं

तुम इस रस्ते में क्यूँ बारूद बोए जा रहे हो

तू मिरे पास जब नहीं होता

तेज़ इतना ही अगर चलना है तन्हा जाओ तुम

तिरी ज़मीन पे करता रहा हूँ मज़दूरी

सीखा न दुआओं में क़नाअत का सलीक़ा

नहीं वो शम-ए-मोहब्बत रही तो फिर 'आसिम'

मुझे ख़बर ही नहीं थी कि इश्क़ का आग़ाज़

मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं

मैं इंहिमाक में ये किस मक़ाम तक पहुँचा

लोग कहते हैं कि वो शख़्स है ख़ुशबू जैसा

कुछ वो भी तबीअत का सुखी ऐसा नहीं है

किसी भी काम में लगता नहीं है दिल मेरा

ख़ुश्क रुत में इस जगह हम ने बनाया था मकान

कहीं कहीं तो ज़मीं आसमाँ से ऊँची है

इंतिहाई हसीन लगती है

हम अपने बाग़ के फूलों को नोच डालते हैं

होंटों को फूल आँख को बादा नहीं कहा

ग़लत-रवी को तिरी मैं ग़लत समझता हूँ

बना रखा है मंसूबा कई बरसों का तू ने

बदल गया है ज़माना बदल गई दुनिया

अजीब शोर मचाने लगे हैं सन्नाटे

अब यही सोचते रहते हैं बिछड़ कर तुझ से

वक़्त बे-वक़्त ये पोशाक मिरी ताक में है

तुम इंतिज़ार के लम्हे शुमार मत करना

तुम भटक जाओ तो कुछ ज़ौक़-ए-सफ़र आ जाएगा

सामने रह कर न होना मसअला मेरा भी है

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