Ghazals of Ayub Khawar

Ghazals of Ayub Khawar
नामअय्यूब ख़ावर
अंग्रेज़ी नामAyub Khawar

ज़ब्त करना न कभी ज़ब्त में वहशत करना

उश्शाक़ बहुत हैं तिरे बीमार बहुत हैं

तिलिस्म-ए-इस्म-ए-मोहब्बत है दरपय-ए-दर-ए-दिल

सोचों में लहू उछालते हैं

सात सुरों का बहता दरिया तेरे नाम

सफ़र में फ़ासलों के साथ बादबान खो दिया

न कोई दिन न कोई रात इंतिज़ार की है

न कोई दिन न कोई रात इंतिज़ार की है

लहरों में बदन उछालते हैं

कोई न देखे गूँज हवा की

किन आवाज़ों का सन्नाटा मुझ में है

इस क़दर ग़म है कि इज़हार नहीं कर सकते

हवा के रुख़ पे रह-ए-ए'तिबार में रक्खा

हरीम-ए-हुस्न से आँखों के राब्ते रखना

घर दरवाज़े से दूरी पर सात समुंदर बीच

इक तुम कि हो बे-ख़बर सदा के

चराग़-ए-क़ुर्ब की लौ से पिघल गया वो भी

बुझने लगे नज़र तो फिर उस पार देखना

बर्ग-ए-गुल शाख़-ए-हिज्र का कर दे

अब तो आए नज़र में जो भी हो

आँख की दहलीज़ से उतरा तो सहरा हो गया

आ जाए न रात कश्तियों में

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