कोई रुस्वा कोई सौदाई है
इक जहाँ आप का शैदाई है
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निगाह-ए-नाज़ में हया भी है
अयाँ या निहाँ इक नज़र देख लेते
वो ये कह कर दाग़ देते हैं मुझे
वहशत-ए-दिल का अजब रंग नज़र आता है
मोहब्बत का मुझे दावा ही क्या है
न बदलना था न बदला दिल-ए-शैदा अपना
देखता हूँ उन की सूरत देख कर
दर्द सहने के लिए सदमे उठाने के लिए
उठाईं हिज्र की शब दिल ने आफ़तें क्या क्या
नाले दम लेते नहीं या-रब फ़ुग़ाँ रुकती नहीं
मुश्किल है इमतियाज़-ए-अज़ाब-ओ-सवाब में