झूटे वादों पर थी अपनी ज़िंदगी
अब तो वो भी आसरा जाता रहा
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दुनिया का ख़ून दौर-ए-मोहब्बत में है सफ़ेद
तक़लीद अब मैं हज़रत-ए-वाइज़ की क्यूँ करूँ
दुनिया को वलवला दिल-ए-नाशाद से हुआ
इस वहम की इंतिहा नहीं है
उदासी अब किसी का रंग जमने ही नहीं देती
चारागर चुप हैं क्यूँ इलाज करें
हादसात-ए-दहर में वाबस्ता-ए-अर्बाब-ए-दर्द
बनी हैं शहर-आशोब-ए-तमन्ना
अहद में तेरे ज़ुल्म क्या न हुआ
दिल हमारा है कि हम माइल-ए-फ़रियाद नहीं
ऐ सोज़-ए-इश्क़-ए-पिन्हाँ अब क़िस्सा मुख़्तसर है
ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं