पैदा वो बात कर कि तुझे रोएँ दूसरे
रोना ख़ुद अपने हाल पे ये ज़ार ज़ार क्या
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उदासी अब किसी का रंग जमने ही नहीं देती
बाज़ी-ए-इश्क़ मरे बैठे हैं
हुस्न-ए-आलम-सोज़ ना-महदूद होना चाहिए
दिल हमारा है कि हम माइल-ए-फ़रियाद नहीं
हक़ारत से न देखो साकिनान-ए-ख़ाक की बस्ती
सुकून-ए-दिल नहीं जिस वक़्त से उस बज़्म में आए
हमेशा से मिज़ाज-ए-हुस्न में दिक़्क़त-पसंदी है
चारागर चुप हैं क्यूँ इलाज करें
मिरे दहन में अगर आप की ज़बाँ होती
ये मशवरा बहम उठ्ठे हैं चारा-जू करते
दिल के अज्ज़ा में नहीं मिलता कोई जुज़्व-ए-निशात
मेरे रोने पे ये हँसी कैसी