सुकून-ए-दिल नहीं जिस वक़्त से उस बज़्म में आए
ज़रा सी चीज़ घबराहट में क्या जाने कहाँ रख दी
Wasi Shah
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हमेशा से मिज़ाज-ए-हुस्न में दिक़्क़त-पसंदी है
बचपने की याद
जीते हैं कैसे ऐसी मिसालों को देखिए
भड़क उट्ठेंगे शो'ले एक दिन दुनिया की महफ़िल में
ये मशवरा बहम उठ्ठे हैं चारा-जू करते
बनी हैं शहर-आशोब-ए-तमन्ना
चश्म-ए-साक़ी का तसव्वुर बज़्म में काम आ गया
क्यूँ न हो शौक़ तिरे दर पे जबीं-साई का
हक़ारत से न देखो साकिनान-ए-ख़ाक की बस्ती
आतिश-ए-ख़ामोश
शम्अ' बुझ कर रह गई परवाना जल कर रह गया
दुनिया को वलवला दिल-ए-नाशाद से हुआ