तिरी कोशिश हम ऐ दिल सई-ए-ला-हासिल समझते हैं
सर-ए-मंज़िल तुझे बेगाना-ए-मंज़िल समझते हैं
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काम दुनिया में बहुत करना है
दिल नहीं जब तो ख़ाक है दुनिया
तुम्हें हँसते हुए देखा है जब से
हादसात-ए-दहर में वाबस्ता-ए-अर्बाब-ए-दर्द
दिल के अज्ज़ा में नहीं मिलता कोई जुज़्व-ए-निशात
हिज्र की रात याद आती है
जाम ख़ाली जहाँ नज़र आया
बनी हैं शहर-आशोब-ए-तमन्ना
कर चुके बर्बाद दिल को फ़िक्र क्या अंजाम की
अहद में तेरे ज़ुल्म क्या न हुआ
पैदा वो बात कर कि तुझे रोएँ दूसरे
तक़लीद अब मैं हज़रत-ए-वाइज़ की क्यूँ करूँ