हयूला

मह ओ साल के ताने बाने को

ज़र्रीं शुआओं की गुल-कारियाँ

मेरी नज़रों ने बख़्शी हैं

आफ़ाक़ के ख़द्द-ओ-ख़ाल-ए-बहार-आफ़रीं में

मिरे ख़ूँ की सौग़ात शामिल है

हर वुसअत-ए-बे-कराँ में

मिरी धड़कनें गूँजती हैं

हर इक लम्हा कोई न कोई बगूला उठा

और मिरे नक़्श-ए-पा को मिटाने की धुन में चला

लेकिन आवाज़-ए-पा की गरजती घटाओं से

टकरा के दश्त-ए-ख़मोशी में

गुम हो गया

हर इक गाम सम्तों ने

संगीं शिकंजों में कसने की

हसरत को रुस्वा किया

मिरी फ़िक्र की लौ

सुमूम ओ सबा की

फ़ुसूँ-कारियों से गुरेज़ाँ

मुसलसल फ़रोज़ाँ रही

ये वो आँच है जिस की हिद्दत से

हर क़ुव्वत-ए-संग-साज़ी पिघलती रही

मगर आज मेरी अना के हयूला में

ख़ुद-साख़्ता कुछ लकीरें उभर आई हैं

मुझ को डर है

कहीं फैलते फैलते ये लकीरें

मिरी ज़ात को पारा पारा न कर दें

अनासिर को फिर आश्कारा न कर दें

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Hayula In Hindi By Famous Poet Aziz Tamannai. Hayula is written by Aziz Tamannai. Complete Poem Hayula in Hindi by Aziz Tamannai. Download free Hayula Poem for Youth in PDF. Hayula is a Poem on Inspiration for young students. Share Hayula with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.