शहर हो दश्त-ए-तमन्ना हो कि दरिया का सफ़र
तेरी तस्वीर को सीने से लगा रक्खा है
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जहान-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का सबात ले के गया
तेरी यादें हैं जिन्हें दिल में बसा रक्खा है
लम्हों ने यूँ समेट लिया फ़ासला बहुत
अजीब कैफ़ियत आख़िर तलक रही दिल की
ये बात सच है कि मरना सभी को है लेकिन
न जाने कौन सी मंज़िल पे इश्क़ आ पहुँचा
डूबा सफ़ीना जिस में मुसाफ़िर कोई न था
यादों का जज़ीरा शब-ए-तन्हाई में
ज़मीर बेचने वाले वो तेरा सौदा-गर
कमाल ये है कि दुनिया को कुछ पता न लगे
शायद यही किताब-ए-मोहब्बत हो ला-जवाब