शब की आग़ोश में महताब उतारा उस ने
मेरी आँखों में कोई ख़्वाब उतारा उस ने
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ये मत कहो कि भीड़ में तन्हा खड़ा हूँ मैं
अजीब हालत है जिस्म-ओ-जाँ की हज़ार पहलू बदल रहा हूँ
घर में चाँदी के कोई सोने के दर रख जाएगा
अपने दुख-दर्द का अफ़्साना बना लाया हूँ
यूँ बार बार मुझ को सदाएँ न दीजिए
ज़िंदगी मेरी मुझे क़ैद किए देती है
तीरगी में सुब्ह की तनवीर बन जाएँगे हम
अगर दश्त-ए-तलब से दश्त-ए-इम्कानी में आ जाते
मेरे जिस्म से वक़्त ने कपड़े नोच लिए
ख़ाक उड़ाते हुए ये म'अरका सर करना है